बढे दोषो की सफाई का बेहतरीन उपाय उपवास
चिकित्सा/ Importance Of Fasting
Author: Dr.Milind KumavatM.D.Ayurveda
उपवास चिकित्सा
रोगो को नष्ट करके स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के उपाय को चिकित्सा कहा जाता है वर्तमान में रोग निवारण के लिए अनेक चिकित्सा पद्धतिया प्रचलित है । सभी पद्धतियों के अपने सिद्धान्त है और सभी चिकित्सा पद्धतियों के विद्वान मानते है की उनकी पद्धति रोगो का नाश करने में पूरी तरह से सक्षम है ।
चिकित्सा की कुछ विधियों में इलाज औषधीयो से किया जाता है जब कई वैकल्पिक चिकित्सा विधियों में बिना दवा के इलाज होता है । आहार चिकित्सा में रोगानुसार आहार का सेवन कराया जाता है जबकी उपवास चिकित्सा में निराहार रहकर रोग निवारण होता है ।चिकित्सा विशेषज्ञ भी इस तथ्य को मानते है कि लोग भूख से नहीं बल्कि ज्यादा खाने से बिमार होकर मरते है । यूं तो आहार जीवन का आधार है , इसी से शरीर के स्वस्थ रहने एवं पुष्टता प्राप्त करने के लिए आवश्यक तत्त्वो की प्राप्ति होती है लेकिन यह तभी सम्भव है जब युक्तिपूर्वक आहार सेवन किया जाये । लेकिन जब आहार का सेवन स्वाद के वशीभूत या केवल पेट भरने के लिए किया जाये तब स्वास्थ्यरक्षक आहार रोगकारक भी बन सकता है । इस बात को न केवल मनुष्य बल्कि जीव – जन्तु भी आदिकाल से जानते आये है ,इसलिए भोजन की गडबडी से पेट खराब होने या अन्यान्य रोग पनपने पर रोग निवारण के जिस सबसे आसान उपाय को अपनाते चले आ रहे है , वह है ,उपवास चिकित्सा । प्राकृतिक चिकित्सकों का मानना है कि उपवास चिकित्सा से ऐसे वे जटिल रोग भी आसानी से मिट जाते है जिनका इलाज अन्य पद्धतीयों में प्रायः सम्भव नहीं हो पाता । आयुर्वेद के अन्तर्गत विभिन्न रोगो में औषधि प्रयोग के साथ – साथ लंघन कराना सीधे तौर पर उपवास चिकित्सा है । वैसे हर स्वस्थ व्यक्ति को भी माह के कुछ दिन उपवास हेतु निश्चित कर लेने चाहिए , इससे पाचन तंत्र को भी कुछ आराम मिल जाने से वह आगे कार्य करने के लिए अधिक सक्षम बनता है । प्रायः हर धर्म में उपवास के महत्त्व को स्वीकारा गया है । हमारे यहा विभिन्न धार्मिक पर्वो पर उपवास करने का नियम है , इनमे धार्मिक महत्त्व की यहा बात न करें और केवल स्वास्थ्य के पहलू पर ध्यान दे तब इनका महत्त्व आसानी से समज में आ जाता है ।
आइए समझें उपवास चिकित्सा के अर्थ और रोग – निवारण में उसका महत्त्व ।उपवास हमारी जीवन पद्धति का एक अंग है । यह न केवल अच्छी सेहत के लिए जरुरी है बल्कि रोग निवारण में भी इसका महत्त्व है । हम जो आहार खाते है ,वह श्वास द्वारा प्राप्त वायु की ऑक्सिजन के संयोग से दुग्ध होकर शरीर के काम आता है । लेकिन जब हम भोजन नही खाते , तब यह ऑक्सिजन पुराने आहार के अवशेष को तथा शरीर में पडे दूषित पदार्थो को धीरे -धीरे जला देता है । एक बात और , हम जो खाते है ,उसे पचाने के लिए जो जीवन शक्ति व्यय होती है भोजन लेने की स्थिति में वह शक्ति शरीर को दोषमुक्त करने में लग जाती है । इस प्रकार शरीर में घुल – मिले रोगकारक तत्त्व उपवास से नष्ट हो जाती है । लंबे उपवास से रक्त के दूषित कोष टुटकर बाहर निकल जाते है अथवा अंदर ही भस्म होकर गैर के रूप में बाहर निकल जाते है और रक्त शुद्ध हो जाता है ।उसमे नये स्वस्थ कोष पनप जाते है । लिवर की कमजोरी , पाकस्थली की दुर्बलता तथा उसके विकार उपवास से दूर होकर वे शक्तिशाली बनतें है । नेत्रो और कानो की देखने , सुनने की शक्ती भी इससे बढती है । उपवास से समस्त स्नायू केंद्र नवजीवन प्राप्त करते है,इससे मानसिक क्षमता , स्मरण शक्ती तथा बुद्धि की बढोत्तरी होती है , चित्त शुद्ध होता है । इसे उपवास की विशेषता कहना चाहिए की एक और जहाँ यह मोटपे को कम करता है वही वजन बढाने का भी इसमे गुण है ।देखा जाता है की जो लोग अपना वजन बढाना चाहते है वे अधिक पौष्टिक आहार लेने लगते है लेकिन पाचन शक्ती शक्तीशाली न होने पर खाया -पिया सम्यक रूप से पाच नही पाता । लेकिन उपवास करने से पाचन शक्ती प्रबल हो जाती है ,परिशोषण और देहात्मीकरण की क्षमता बढ जाती है ।इसी कारण से उपवास के बाद खाया आहार अच्छी तरह पचनें लगता है ,उसके पौष्टिक तत्त्व शरीर भार को बढाने में सफल रहते है ।रोग निवारण में उपवास का अपना महत्त्व है । यदी रोग की शुरुवात में उपवास का सहारा लिया जाय तो एक तो रोग बढने पर रोक लग जाती है , दुसरे पनपा रोग शीघ्र ही मिट जाने की संभावना बन जाती है ।वात व्याधि ,अजीर्ण , यकृत रोग , पथरी, दमा , त्वचा रोग कॅन्सर जैसी बिमारीयों में रोगी बहुत कष्ट पाता है ,यदी रोगी उपवास को विधिपूर्वक अपना ले तब देर- सेवेर उसके स्वस्थ होने की संभावना बढ जाती है
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